Site icon

पूर्ण-अवतार श्रीकृष्ण-Happy Krishna Janmashtami 26 Aug 24

पूर्ण-अवतार श्रीकृष्ण
जन्म से लेकर महाभारत के संग्राम तक श्रीकृष्ण संघर्षो के बीच रहते हैं। वे बांसुरी बजाकर रासलीला रचाते हैं, तो भयानक असुरों का संहार भी करते हैं। सभी मानवीय गुण होने के कारण ही उन्हें पूर्ण अवतार कहा गया और शायद यही कारण है कि सामान्य ग्वाले से वह द्वारकाधीश तक का सफर तय कर लेते हैं।
खुले विचारों और उदार हृदय वाला देश ही श्रीकृष्ण जैसे बहुआयामी और भविष्य की संभावनाओं से भरे हुए दैव-चरित्र को जन्म दे सकता है। कृष्ण अधिकांश लोगों के लिए सबसे प्रिय और सबसे जीवंत आराध्य हैं। क्या इतनी विविधताओं और विरोधाभासों से भरे अन्य किसी चरित्र को अब तक गढ़ा जा सका है? यही कृष्ण की सच्ची ऊर्जा है। यह वह अद्भुत ऊर्जा है, जो उन्हें कभी ‘पुराना’ नहीं होने देगी।

कृष्ण एक साथ दो स्तरों का जीवन जीते हैं और वह भी भरपूर तरीके से। उनके भौतिक स्तर का जीवन एक उत्सव की तरह है। एक ऐसे उत्सव की तरह, जहां कोई रोक-टोक नहीं है। जहां कोई सोच-विचार नहीं और जहां जैसा मन में आया, करने की आजादी है। यहां कृष्ण एक प्रकृति की तरह हैं। कृष्ण के जीवन का दूसरा स्तर अत्यंत आध्यात्मिक और सूक्ष्म स्तर का वह जीवन है, जहां भोग की ये जड़ें जीवन के रसातल में धंसकर एक ऐसा रस संचित करती हैं, जो व्यक्ति की चेतना को ऊ‌र्ध्वगामी बना देता है। कृष्ण एक भोगी हैं, तो अद्भुत योगी भी हैं और वे योगी इसीलिए बन पाए, क्योंकि उन्होंने भोग की उपेक्षा नहीं की।
जीवन के जितने भी संदर्भ हो सकते हैं, वे सभी कृष्ण के जीवन में उपस्थित हैं। तभी तो कृष्ण को पूर्ण अवतार कहा गया है। राम भी परमात्मा हैं, लेकिन वे परमात्मा के अंश हैं और कृष्ण है पूर्णाश। इसीलिए ग्रंथों में कृष्ण को समस्त कलाओं में पारंगत भी कहा गया है। जीवन की कोई कला उनसे छूटी नहीं है। राम न तो गाते हैं और न ही नाचते हैं। कृष्ण का जीवन संगीत से परिपूर्ण है। यानी जीवन में जो कुछ भी होता है, उन सबको कृष्ण ने आत्मसात किया। इसीलिए कृष्ण पूर्ण अवतार हैं।
कृष्ण के व्यक्तित्व में निरंतर जो एक प्रफुल्लता है, वह इसलिए है, क्योंकि उनका जीवन हर तरह के दमन से मुक्त रहा है। उन्होंने जीवन के सब रंगों को स्वीकार कर लिया है। वे प्रेम से भागते नहीं। वे पुरुष होकर स्त्री से पलायन नहीं करते। वे करुणा और प्रेम से भरे होते हुए भी युद्ध में लड़ने की साम‌र्थ्य रखते हैं। अहिंसक चित्त है उनका, फिर भी हिंसा के दावानल में उतर जाते हैं। अमृत की स्वीकृति है उन्हें, लेकिन जहर से कोई भय भी नहीं है उन्हें।
दरअसल, कृष्ण एक साथ दो विरोधी क्रियाओं द्वारा मानवीय प्रवृत्तियों को अंजाम देते हैं। यदि कोई मुरलीधारी सुदर्शन चक्र भी चलाए, यदि कोई कालिया नाग जैसे भयानक और विषैले सर्प के फन पर नृत्य करे, यदि कोई गोपियों से रास रचाने के बावजूद योगी कहलाए और यदि कोई रणक्षेत्र को छोड़ने के बावजूद महान योद्धा कहलाए, तो उसे आप क्या कहेंगे? आमतौर पर हम यही मानते हैं कि जिसमें दो विरोधी वृत्तियां एक साथ काम करेंगी, उसकी ऊर्जा दो विपरीत दिशाओं में नियोजित होकर उसकी क्षमताओं को निम्नतम बिंदु पर पहुंचा देगी। लेकिन कृष्ण के ऊपर यह लागू नहीं होता। ऊर्जा का वह नियम, जो लोगों की कमजोरी का कारण बनता है, कृष्ण की शक्ति का आधार बन जाता है। जो बांसुरी बजाकर नाच सकता है, वही चक्र लेकर लड़ सकता है। जो कृष्ण मटकी फोड़ सकता है, वही कृष्ण गीता जैसा गंभीर उद्घोष कर सकता है। जो कृष्ण माखन चोर हो सकता है, वही गीता का परम योगी हो सकता है। यही कृष्ण की महत्ता है और यही कृष्ण की निजता भी।
कृष्ण से सफलता के कई सूत्र पकड़े जा सकते हैं। उनके भाग्य की बिडंबना देखिए कि एक राजा का भांजा होने के बावजूद उन्हें बंदीगृह में जन्म लेना पड़ता है और जन्म लेने के तुरंत बाद अपनी मां को छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ता है। वह ऐसे बालक हैं, जिनका शत्रु उसी राज्य का राजा है। क्या किसी बालक की इससे अधिक दयनीय स्थिति की कल्पना की जा सकती है? अपने जीवन की शुरुआत उन्होंने एक ग्वाले (चरवाहे) के रूप में की और अंत हुआ द्वारका के राजा के रूप में। उनके जीवन के उठते हुए ग्राफ के बीच में कई-कई वे प्रसंग बिखरे हुए हैं, जो हमें न केवल ऊर्जा देते हैं, बल्कि ऊर्जा को एक सही दिशा भी प्रदान करते हैं। ऐसे कृष्ण को शत-शत प्रणाम।
HAPPY JANMASHTAMI 26 AUG
Exit mobile version